भगत सिंह की कलम से लिखा गया पहला खत अपने दादा के नाम था जो उन्होंने तब लिखा था जब वे छठी कक्षा में पढ़ते थे. कार्ड उर्दू में है लेकिन उसपर कोई तारीख नहीं लिखी गयी है, पर लाहौर के डाकखाने की मुहर में 22 जुलाई 1918 और खटकडकलां के डाकखाने की मुहर में 23 जुलाई 1918 है. ये ख़त एक कार्ड के रूप में अब तक सुरक्षित है.
श्रीमान पूज्य बाबा जी,
नमस्ते
अर्ज ये है की खत आपका मिला – पढ़कर दिल को ख़ुशी हासिल हुई. इम्तिहान के बाबात ये है की मैंने पहले इस वास्ते नहीं लिखा था, की हमें बताया नहीं था. अब हमें अंग्रेजी और संस्कृत का बताया है. उनमें मैं पास हूँ. संन्स्कृत में मेरे 150 नंबरों में से 110 नंबर हैं. अंग्रेजी में 150 में से 68 नंबर हैं, जो 150 नंबरों में से 50 नंबर ले आवे वो पास होता है. नंबर 68 से अच्छा पास हो गया हूँ.किसी किस्म की फ़िक्र न करे. बाकी नहीं बताया और छुट्टियाँ 8 अगस्त को पहली छुट्टी होगी. आप कब आयेंगे, तहरीर फरमावें.
डाकखाने की मुहर के अनुसार भगतसिंह ने यह पत्र 14 नवम्बर 1921 को लाहौर से अपने दादा जी को लिखा था.
मेरे पूज्य दादा साहब जी
नमस्ते
अर्ज यह है कि इस जगह खैरियत है और आपकी खैरियत श्री परमात्मा जी से नेक मतलूब हूँ. अहवाल ये है कि मुद्दत से आपका कृपा पत्र नहीं मिला. क्या सबब है? कुलबीरसिंह, कुलतारसिंह की खैरियत से जल्दी मुत्तला फरमावें.बेबे साहबा अभी मोरावाली से वापस नहीं आयीं. बाकी सब खैरियत है.
आपका ताबेदार
भगतसिंह
(कार्ड की दुसरी तरफ)
माताजी को नमस्ते. चची साहबा को नमस्ते. मांगी चमार अभी तक तो नहीं आया. मैंने एक पुराणी किताब मोल ले ली थी, जो कि बहुत सस्ती मिल गई थी.
(कार्ड के लाईनों के बीच उलटे रुख)
आजकल रेलवे वाले हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं. उम्मीद है कि अगले हफ्ते के बाद जल्द शुरू हो जायेगी.
(पिता जी के नाम पत्र जिसमें उन्होंने घर को अलविदा कहा )
पूज्य पिता जी, नमस्ते।
मेरी जिन्दगी मकसदे आला(उच्च उद्देश्य) यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल(सिद्धांत) के लिए वक्फ(दान) हो चुकी है. इसलिए मेरी जिन्दगी में आराम और दुनियावी खाहशात(सांसारिक इच्छाएँ) बायसे कशिश(आकर्षक) नहीं हैं.
आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन के लिए वक्फ कर दिया गया है. लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ.
उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे.
आपका ताबेदार
भगत सिंह
( अपने भाई को लिखा भगत सिंह का पत्र )
सेन्ट्रल जेल , लाहौर
16 सितम्बर 1930
ब्रादर अजीज कुलबीर जी,
सतश्रीअकाल
आपको मालुम होगा कि बमूजिब अहकाम अफसरान बाला मेरी मुलाकातें बंद कर दी गई हैं. अन्दरिन हालात फ़िलहाल मुलाकात न हो सकेगी और मेरा ख्याल है की अनकरीब ही फैसला सुना दिया जाएगा. इसलिए
किसी दिन जेल में आकर मेरी कुतब, दीगर कागजात, जेल के डिप्टी सूपरन्टेन्डन्ट के दफ्तर में भेज दूंगा, आकर ले जाना. न मालूम मुझे बार बार यह ख्याल क्यों आ रहा है की इसी हफ्ता के अन्दर अन्दर या ज्यादा से ज्यादा इसी माह में फैसला और चालान हो जाएगा. इन हालातों में अब तो किसी दुसरी जेल में मुलाकात हो तो हो, यहाँ तो उम्मीद नहीं.
वकील को भेज सको तो भेजना. मैं प्रिवी कैंसिल के सिलसिले में एक जरूरी बात दरयाफ्त करना चाहता हूँ. वालिदा साहबा को तसल्ली देना, घबराएं नहीं.
आपका भाई
भगतसिंह
सेन्ट्रल जेल, लाहौर
25 सितम्बर 1930
ब्रादर अजीज कुलबीर जी,
सतश्रीअकाल
मुझे यह मालूम करके कि एक दिन आप वालिदा को साथ लेकर आये और मुलाकात की इजाज़त न मिलने पर मायूस लौट गए, बड़ा अफ़सोस हुआ. आखिर तुम्हें तो मालूम हो चूका था की जेल वाले मुलाकात की इजाज़त नहीं देते. फिर वालिदा को क्यों साथ लाये? मैं जानता हूँ वो इस वक़्त सख्त घबराई हुई हैं, मगर इस घबराहट और परेशानी का फायदा? नुकसान जरूर है, क्योंकि जब से मुझे मालूम हुआ है कि वो बहुत रो रही हैं, मुझे खुद भी बेचैनी हो रही है. घबराने की और कोई बात नहीं, और इससे कुछ हासिल भी नहीं. सब हौसला से हालात का मुकाबला करो. आखिरी दुनिया में दुसरे लोग भी तो हजारों मुसीबतों में फंसे हुए हैं, और फिर लगातार एक साल मुलाकातें कर तबियत सेर नहीं हुई, तो दीगर मजीज़ मुलाकातों से भी तसल्ली न हो सकेगी.
मेरा ख्याल है कि फैसला और चालान के बाद मुलाकातें खुल जायेगी, लेकिन अगर फर्ज किया जाए कि मुलाकात की इजाज़त न मिले तो घबराने का क्या फायदा
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