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इस साल के पुस्तक मेले में बच्चों के स्टाल पर अपने भांजे की वजह से खूब घूमना हुआ. वहां एक स्टाल पर कार से सम्बंधित ये किताबें देखकर खरीदने का दिल कर गया. इन किताबों की कीमत बहुत ज्यादा थी, इसलिए अपनी ईच्छा भी वहीँ उसी स्टाल पर छोड़ कर हम लोग आगे बढ़ गए. उस स्टाल के पास कुछ बच्चे भी खड़े थे जो बड़ी हसरत भरी निगाहों से इन किताबों को देख रहे थे. शायद अपने माता-पिता को वे कह भी रहे थे कि किताबें खरीदने के लिए लेकिन उनके पेरेंट्स शायद इन किताबों की कीमत की वजह से इन्हें खरीद नही रहे थे.
मुझे अचानक लगा कि कारों से सम्बंधित इन किताबों की कीमत इतनी ज़्यादा नही होनी चाहिए. कितने ऐसे बच्चे हैं, जो कार में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन किताब नही खरीद पाते कारों की. पेरेंट्स भी कार से जुडी किताबें या मैगज़ीन बच्चों को नहीं दिलाते, ये कह कर टाल देते हैं कि ये सब बेकार की चीज़े हैं, बेकार के शौक हैं. कई पेरेंट्स को बच्चों को अपने कमरे में कारों के पोस्टर्स भी नहीं लगाने देते अपने इसी तर्क की वजह से.
लेकिन बच्चे जो कारों में दिलचस्पी रखते हैं वो क्या करे? अब के बच्चे तो अपने लैपटॉप या मोबाइल पर कारों के बारे में पढ़ भी लेते हैं लेकिन पहले के बच्चे, जब हम स्कूल में थे तब के ज़माने के बच्चों के पास तो कोई आप्शन ही नहीं होता था. हम लोग तो बस मैगज़ीन के स्टाल पर खड़े होकर ऑटोकार. ओवरड्राइव के मैगज़ीन को बड़े हसरत भरे नज़र से देखते थे. पेरेंट्स से इन मैगज़ीन को खरीदने के लिए कहने पर जवाब मिलता था, कि क्या करोगे ये सब पढ़ कर? वहीँ अगर हम क्रिकेट से जुड़ी किताब “क्रिकेट सम्राट” या फिर फिल्म से जुड़ी किताबें “फिल्मफेयर. स्टारडस्ट” खरीदने को कहते, तो कभी कभी हमारी ये मांग पेरेंट्स पूरी कर देते थे, लेकिन कारों से जुड़ी किताबों के फरमाइश को तो सीधे नकार दिया जाता था.
वजह बड़ी मामूली और बचकानी थी. पेरेंट्स का कहना होता, कि क्या फायदा ऐसे लक्जरी और स्पोर्ट्सकार के बारे में पढ़कर? किसी जन्म में ऐसी बड़ी बड़ी कार में बैठ तो पायेंगे नहीं, तो फिर इनके किताब या मैगज़ीन पढ़ने से फायदा? मतलब, पैरेंट्स अनजाने में ही गज़ब की निराशावादी बातें बच्चों से कर देते थे. कुछ पेरेंट्स का तो तर्क ये भी होता था कि बच्चे ऐसी किताबों से बिगड़ जायेंगे. उस समय भी मेरी समझ में नहीं आता था कि कार की किताबों से बच्चे कैसे बिगड़ जायेंगे, और अब भी इस तर्क का मतलब समझ नहीं पाया हूँ.
ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ पेरेंट्स की ऐसी सोच थी, बल्कि स्कूल में पढ़ रहे बच्चे या कॉलेज के सहपाठियों का भी एकदम यही तर्क होता था. कभी सुपरकार्स की बात उठा भी दिए अगर दोस्तों के बीच, तो दो तीन दोस्त ये कह कर चुप करा देते थे, कि अरे अपने औकात में रहना चाहिए हम लोग को. इन कारों पे चढ़ने की हसियत नहीं तो इनके बारे में पढ़ कर फायदा ही क्या?
मेरे पास इन सब तर्कों का बड़ा सीधा सा जवाब रहा है कि, अगर आपको लगता है कि कारों से जुड़ी बातें पढ़ने के फायदे नहीं, तो मेरे ख्याल में स्पेस साइंस और एस्ट्रोनॉमी जैसे विषय भी बच्चों को पढ़ाने का कोई तर्क नहीं. इसकी वजह भी है मेरे पास – हो सकता है अभी आपकी ऐसी स्थिति नहीं कि ऐसी महंगी कार में आप बैठे और घूमें, लेकिन कौन जाने भविष्य में किस्मत आपकी पलट जाए और आप सुपरकार्स में हर रोज़ बैठकर घूमें. लेकिन आपकी किस्मत जितनी भी पलटे, इतनी तो कभी नहीं पलटेगी कि आप हर रोज़ चाँद, मार्स और वेनस के चक्कर लगाकर वापस पृथ्वी पर लौट आये. तो फिर इनके बारे में पढ़कर, इनसे जुड़ी ख़बरें पढ़कर कौन सा आपका भला होने वाला है? बंद कर दीजिये इन सब बातों को पढ़ना और पढ़ाना.
अरे, अगर बच्चे आपके स्कूल में हैं और इसी उम्र से ही वो कार के विषय में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं तो उसके इस शौक को सपोर्ट करने चाइये. वैसे भी ऑटोमीबिले इंडस्ट्री बहुत तेज़ी से आगे बढ़ गया है और अभी बढ़ेगा. जाने कितनी संभावनाएं हैं इस इंडस्ट्री में अभी बच्चों के लिए.
मुझे करुण चढ़ौक की बात भी अभी याद आ रही है(करुण और नारायण कार्तिकेयन सिर्फ दो ऐसे रेसर्स हैं जिन्होंने फार्मूला वन में रेस की है). करुण भारत के टॉप रेसर्स में से हैं, और इन्हें स्पोंसर की कमी की वजह से कुछ साल पहले फार्मूला वन चैम्पीअन्शिप से बाहर होना पड़ा था. उन्होंने कहा था कि हमारे देश में कारों से जुडी बातें या रेसिंग को बकवास के केटेगरी में डाल दिया जाता है, और रेसिंग को कोई भी हमारे देश में एक सपोर्ट की तरह कभी एक्सेप्ट नहीं करता. वहीँ एक रेसर ऐसे भी हैं(अरमान इब्राहम) जो कि अपने रेसिंग के लिए पैसे जुटाने के लिए कभी टीवी में खतरों के ख़िलाड़ी टाइप प्रोग्राम में हिस्सा लेते हैं तो कभी किसी और तरह से अपने लिए खुद ही स्पोंसर और पैसों का जुगाड़ कर लेते हैं. अरमान की तरह ही कहानी है स्नेहा शर्मा की, जो भारत की टॉप वीमेन रेसेर्स में से हैं, और जो अपने रेसिंग को जिन्दा रखने के लिए दूसरे जॉब्स कर रही हैं. हमारे देश में लगभग सभी रेसर्स ऐसे ही अपने खेल के खर्चे उठा रहे हैं. हमारे देश में कारों और रेसिंग के प्रति ऐसी मानसिकता है लोगों की, कि आने वाले समय में मुमकिन नहीं लगता कि कारों और रेसिंग का यहाँ ज्यादा भविष्य भी है, लेकिन ऐसी मानसिकता के बीच, ऐसे रेसर्स भी मौजूद हैं हमारे देश में जो अपने खेल को जिंदा रखने के लिए और भारत में रेसिंग का भविष्य बनाये रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.
भारत भले छोटी गाड़ियों और मिड-साइज़ सेडान के लिए दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट बनता जा रहा है, यहाँ तक कि भारत में कई लक्जरी और टॉप ऑफ़ द लाइन गाड़ियाँ भी खूब बिक रही हैं, लेकिन फिर भी कारों से जुड़ी बातें करने का यहाँ कोई स्कोप नहीं है. इन बातों को यहाँ बे-कार के केटेगरी में डाल दिया जाता है.
बच्चे जिनमें कारों के प्रति इंटरेस्ट है, और वो अगर इंग्लिश में कम्फ़र्टेबल हैं, उनके पास फिर भी बहुत सी वेबसाइट या मैगज़ीन हैं पढ़ने के लिए. अगर पैरेंट्स मैगज़ीन नहीं खरीद कर देते तो वो अपने पॉकेट मनी से पैसे बचा कर मैगज़ीन खरीद सकते हैं, जैसे हम लोग करते थे. या फिर इन्टरनेट पर कई ऐसे साइट्स हैं जहाँ वो कारों से जुड़ी बड़ी दिलचस्प ख़बरें पढ़ सकते हैं. पर ऐसे बच्चे या युवा जो कारों में तो दिलचस्पी रखते हैं लेकिन इंग्लिश में मैगज़ीन पढ़ना उतना प्रेफर नहीं करते, उनके पास कोई तो कोई चारा ही नहीं है.
दो तीन साल पहले कारों के मैगज़ीन ओवरड्राइव ने एक बड़ी अच्छी पहल की थी जब उन्होंने ओवरड्राइव का हिंदी संस्करण निकालना शुरू किया था. हिंदी पढ़ने वाले कार-एन्थूज़ीऐस्ट के लिए ये एक बहुत बड़ा तोहफा था. लेकिन ओवरड्राइव ने अब शायद अपने मैगज़ीन का हिंदी-संस्करण निकालना बंद कर दिया है. हिंदी में कारों की कोई और किताबें या मैगज़ीन भी उपलब्ध नहीं जहाँ कार-एन्थूज़ीऐस्ट को अपने काम की चीज़ें पढ़ने को मिल सकें.
यहाँ तक कि इन्टरनेट पर भी आपको ज्यादा कंटेंट नहीं मिलेंगे. इन्टरनेट पर वैसे तो जितने भी मीडिया कंपनियों के वेबसाइट हैं, जैसे एनडीटीवी, जी, आजतक, नवभारत टाइम्स इत्यादी, इन सब पर आपको हिंदी सेक्शन में ऑटोमोबाइल की ख़बरें तो मिल जायेंगी पढ़ने को, लेकिन इनके हिंदी के ऑटोमोबाइल सेक्शन कभी कभी अपडेट होते हैं, सप्ताह में एक दो बार. कई बार तो आपको एक दो सप्ताह पुराने खबर ही पढ़ने को मिलेंगे इनके साइट्स पर. वहीँ इन्हीं वेबसाइट के इंग्लिश वाले ऑटोमोबाइल सेक्शन हर रोज़ अपडेट होता है और ख़बरें एकदम लेटेस्ट मिलती हैं पढ़ने को. (इन्हीं सब बातों को देखते हुए मैंने हिंदी में कारों की बातें करने के लिए एक ब्लॉग बनाया था, लेकिन पिछले कुछ समय से ये ब्लॉग एकदम बंद पड़ा था. कमी थी समय की और कुछ दूसरे कामों ने भी व्यस्त रखा था मुझे.लेकिन पिछले दो तीन महीनों से ये ब्लॉग नियमित अपडेट कर पा रहा हूँ.)
मैं बहुत समय से कारों से जुड़ी बातें फॉलो कर रहा हूँ, लेकिन जब भी अपने आसपास लोगों की ऐसी मानसिकता देखता हूँ कारों के प्रति तो बड़ा दुःख होता है. कितने ऐसे भारतीय रेसर्स हैं जो न जाने कब से हमारे देश का नाम इस रेसिंग की दुनिया में आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन हम ही ऐसे खिलाड़ियों के नाम से बेखबर हैं. अधिकतर लोगों को भारतीय रेसिंग में सिर्फ नारायण कार्तिकेयन का नाम ही पता है. अरमान इब्राहीम, करुण, स्नेह शर्मा, बानी यादव, अखिल रबिन्द्र, जेहान दारूवाला और आदित्य पटेल(जो कि 24 hours of Nurburgring में भी रेस कर चुके हैं), इनके नाम से हम लोग अभी तक अनजान हैं.
ऐसा नहीं है, कि लोग कारों या रेसिंग के बारे में पढ़ना नहीं चाहते, लेकिन उन्हें पढ़ने के लिए ज्यादा कंटेंट उपलब्ध ही नहीं है, ना तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ना ही प्रिंट मीडिया में. मैं देखता हूँ जिस हिंदी की-वर्ड से लोग मेरे कार के ब्लॉग तक आते हैं, और यकीन मानिए, उन की-वर्ड को देखने के बाद ये तो मालूम चलता ही है कि हिंदी में कारों की या रेसिंग की जानकरी खोजने वाले लोगों की कमी नहीं, लेकिन उन्हें उनके लायक कंटेंट हिंदी में मिलता ही नहीं.
ये सब हालात और बातें तभी बदलेंगी जब हमारे देश में कार-एन्थूज़ीऐस्ट बच्चों या युवाओं को लोग गंभीरता से लेंगे, और उनके शौक के प्रति पेरेंट्स उतना ही जागरूक रहेंगे, उतना ही ध्यान देंगे जितना अपने बच्चे के क्रिकेट के शौक को ध्यान में रखते हैं और एएहमियत देते हैं.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अग्नि-5 की सफलता पर बधाई : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…