पूछते हैं वो के ग़ालिब कौन है?
कोई बतलाओ के हम बतलाएं क्या?
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बल्ली मारां की वो पेचीदा दलीलों की-सी गलियाँ
एक क़ुरआने सुख़न का सफ़्हा खुलता है
असद उल्लाह ख़ाँ `ग़ालिब’ का पता मिलता है करीब तीन-चार साल पहले की बात होगी, ग़ालिब को गंभीरता से तभी पढ़ा। यूँ तो गुलज़ार साहब द्वारा निर्देशित धारावाहिक मिर्ज़ा ग़ालिब देख चुका था, लेकिन ग़ालिब को पढ़ने के बाद उसे दोबारा देखने पे एहसास हुआ की मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर सात घंटे की धारावाहिक बनाकर गुलज़ार साहब ने ग़ालिब के दीवानों पर कितना बड़ा उपकार किया है। नसरुद्दीन शाह को ग़ालिब के किरदार में देखने के बाद ये यकीन हो ही जाता है की ग़ालिब भी हू-ब-हू वैसे ही दीखते होंगे, बात करते होंगे..शायरी करते होंगे..लतीफे कहते होंगे..नसरुद्दीन शाह ने ग़ालिब को अपने अंदर पूरी तरह से ढाल लिया था। बल्ली मारां का मोहल्ला और कासिम जां की गलियां घूमने की इच्छा ग़ालिब को पढ़ने के बाद हमेशा होती ही थी, लेकिन कभी मौका नहीं मिला। कुछ दिन पहले इरादा किया की पुरानी दिल्ली की तरफ जाऊं। दिल्ली 6 घूमने की भी इच्छा थी और चचा ग़ालिब से मुलाकात करने की भी। मैं अपने एक दोस्त अकरम के साथ दिल्ली 6 घूमने निकल गया। गली कासिम जां और पुरानी दिल्ली हालांकि अब वैसी नहीं है, जैसे पहले रही होगी..लेकिन फिर भी अच्छा लगा..दिल्ली की असली खुशबू इन पुरानी और छोटी छोटी गलियों में से आ रही थी..किसी भी शहर के पुराने इलाकों में टहलना, हमेशा से मुझे पसंद है..कासिम जां की गली में ही ग़ालिब की हवेली है, जो बहुत टूट चुकी है, लेकिन फिर भी एक बहुत छोटा सा हिस्सा बचा लिया गया है जिसमे ग़ालिब स्मारक बना हुआ है और उनसे जुड़ी बहुत सी चीज़ें रखी हुई हैं। वहाँ जाने पर पता चला की इस स्मारक को बनवाने में सबसे बड़ी भूमिका गुलज़ार साहब की थी। इस हवेली में मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपने जीवन का अंतिम समय व्यतीत किया था। हवेली में दाखिल होते ही पहली नज़र पड़ी मिर्ज़ा साहब पर। जाने माने मूर्तिकार श्री भगवान रामपुरे ने ग़ालिब की कमाल की मूर्ति बनायी है। सामने खड़े होने पे ऐसा लगता है जैसे आप ग़ालिब के सामने खड़े हैं। इसी मूर्ति के दोनों तरफ ग़ालिब के लिखे कुछ शेर और ग़ालिब के काम को उदाहरण के तौर पे सामने रखा गया है।
मूर्ति के पास ही ग़ालिब और उनकी पत्नी ‘उमराव बेगम’ के कपड़े भी प्रदर्शित किये गए हैं। दीवारों पर जगह जगह ग़ालिब के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और तस्वीरें लगायी गयी हैं। दीवार पर लगे तस्वीरों से पता लगता है की रामपुर को ग़ालिब उर्दू का गढ़ मानते थे और रामपुर उनके दिल के बेहद करीब भी था। वहाँ बड़ी महफ़िलें जमा करती थी और ग़ालिब की उन दिनों वहाँ एक बड़ी कोठी हुआ करती थी, जो अब भी है। ग़ालिब की रामपुर वाली कोठी अब बेहद खस्ता हाल में है। सबसे दुःख की बात ये है की सरकार ने ग़ालिब की उस कोठी को ‘एनेमी प्रोपर्टी’ घोषित कर दिया है, जबकि वहाँ भी उनके नाम का एक स्मारक बनना चाहिए। रामपुर के अलावा ग़ालिब को बनारस और मुरादाबाद शहर से भी काफी लगाव था। ग़ालिब के दो खत भी प्रदर्शनी में लगाये गए हैं। हवेली के अंदर एक छोटे से हॉल में जाते ही सामने ग़ालिब की एक और मूर्ति है, जिसमे ग़ालिब बैठे हुए हुक्का पी रहे हैं। ये मूर्ति इतनी सजीव है की दूर से देखने पे बिलकुल ऐसा लगेगा की मूर्ति नहीं बल्कि खुद मिर्ज़ा साहब सामने बैठे हैं।
हॉल में ही एक तरफ मिर्ज़ा साहब के प्रिय खेल चौसर और सतरंज भी प्रदर्शनी में रखे गए हैं। मिर्ज़ा साहब के समय किस तरह के बर्तन इस्तेमाल किये जाते थे, वो भी प्रदर्शनी में लगाये गए है। हालांकि बर्तन उस समय के नहीं हैं, सिर्फ उदाहरण के तौर पे इसे वहाँ रखा गया है। ग़ालिब के किताबों की भी प्रदर्शनी एक तरफ लगायी गयी है। ग़ालिब के इस हवेली (जो की बस नाम की ही है, छोटा स्मारक ही कह लीजिए) में बस दो छोटे हॉल हैं और उनकी बहुत सी चीज़ें एक साथ रखी गयी हैं। यहाँ आकार आप ग़ालिब को महसूस कर सकते हैं। जो शान्ति और सुकून यहाँ मिलती है उसे ग़ालिब के चाहने वाले अच्छी तरह से समझ सकते हैं। मैं तो अपने दोस्त अकरम के साथ करीब डेढ़ घंटे तक यहाँ बैठा रहा, उनके बारे में पढता रहा। ग़ालिब की हवेली में, उनकी चीज़ों के सामने उनके बारे में बातें करना बड़ा अच्छा लगा..ग़ालिब के बारे में जो भी थोड़ा बहुत मुझे पता है, मैं बहुत देर तक अकरम को वो किस्से सुनाता रहा। दूसरे जगह जाने की जल्दी अगर ना होती, तो हम लोग वहाँ बहुत देर तक बैठ सकते थे। अब सोच में हूँ की किसी दिन ग़ालिब के शायरी की कोई किताब लेकर वहाँ बैठूँगा कुछ देर। ये एक अलग तरह का अनुभव हो सकता है।
गुलज़ार साहब ने इस भूली हुई और टूटी हवेली को एक बेहद खूबसूरत स्मारक का रूप देकर बहुत ही अच्छा काम किया। लोगों को इस हवेली के बारे में जानकारी तक नहीं है, शायद इसलिए भी इस हवेली में कोई आता जाता नहीं। हम जैसा कोई कभी भूले भटके बस कभी कभी यहाँ आ जाता है। स्मारक के गार्ड ने भी बताया की यहाँ कभी कभी ही कोई आता, वरना ये खूबसूरत स्मारक ऐसे ही सुनसान रहती है।
अब देखिये ग़ालिब हवेली की कुछ तस्वीरें, और साथ में मिर्ज़ा साहब की शायरी..
ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान “ग़ालिब”
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख़्वार होता
हरचंद सुबुकदस्त हुए बुतशिकनी में
हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और
कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना? अगर एक बार होता
उम्र भर देखा किये मरने की राह
मर गए पर देखिये दिखलायें क्या
इस कॉलेज में ग़ालिब पढ़ाते भी थे
शम्मा बुझती है तो उस में से धुआं उठता है
शोला-ऐ-इश्क सियाहपोश हुआ मेरे बाद.
“ग़ालिब”-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों
मैंने माना कि कुछ नहीं ‘ग़ालिब’
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है
बेख़ुदी बेसबब नहीं “ग़ालिब”
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
ग़ालिब का रामपुर निवास स्थान
हर एक बात पे कहते हो तुम कि ‘तू क्या है’
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
इसी हवेली में ग़ालिब का विवाह उमराव बेगम से हुआ था
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
मुरादाबाद में ग़ालिब का मकान
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि गालिब का है अंदाज ए बयां और
होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को ना जाने
शायर तो वो अच्छा है, पर बदनाम बहुत है
[अगर आप ग़ालिब हवेली(स्मारक) जाने का इरादा रखते हैं और रास्ता मालुम नहीं, तो चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन से कोई रिक्शा कर लें, वो आपको कासिम जां गली, मिर्ज़ा ग़ालिब हवेली लेते जाएगा, जो ज्यादा दूर नहीं..चाहे आप तो रास्ता पूछ के पैदल भी जा सकते हैं..हवेली में इंट्री के पैसे नहीं लिए जाते।]
हुयी मुद्दत कि गालिब मर गया लेकिन…
अब जब भी मेरा आना होता है दिल्ली वादा करो कि चचा से मिलने साथ चलोगे …
बेहद ही उम्दा पोस्ट अभिषेक … बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें !
बेहद खूबसूरत पोस्ट अभिषेक । लगता है गालिब के साथ एक दिन बडा ही रुहानी बीता । सहेजने लायक पोस्ट
बहुत अच्छा अभिषेक….
लगा मुम्बई बैठे बैठे दिल्ली-६ की रुहानियत से रूबरू हो गये….
गजब पोस्ट… बहुत बहुत शुभकामनाएं…
वाह गालिब की दीवानगी कभी हमें भी थी लेकिन उम्र के साथ घुलती गई। बहुत बढ़िया क्या बात है, मजा आ गया, वैसे आजकल आप गालिब के दीवानों की पायदान में चोटी मॆं पहुँच रहे हैं।
गालिब का पूरा घर ही घुमा दिया आपने..
आज तो सच में तुम्हारा बहुत बहुत आभार करने को दिल कर रहा है.
ज़रूर जाना चाहूँगी यहाँ …. एक बेहतरीन ,सहेजने योग्य पोस्ट के लिए आभार
अभिषेक भाई इस खूबसूरत पोस्ट के लिए आभार .. आप ने तो हमें मिर्ज़ा साहब के घर से ऐसा रूबरू कराया की लगा खुद ही घूम आये हों
वाह!
हवेली दिखा भी दिया आपने और वहां जाने की प्यास भी जगा दी.
बहुत अच्छी पोस्ट… आभार!!
बहुत बहुत आभार आपका इस संग्रहणीय पोस्ट के लिए!
बड़े पुण्य का काम किया अभिषेक…इतनी सुन्दर पोस्ट लिखकर
फिर से वो सीरियल देखने का मन होने लगा…कम स कम जगजीत सिंह की आवाज़ में ग़ालिब के अशआर तो सुन ही लिए जाएँ.
एक अरसे से बड़ी हसरत है बल्लीमारां के मोहल्ले में जा कर गली क़ासिम-जान में बसी ग़ालिब की रूह को महसूस करूँ.. खैर चचा ने सही कहा है "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी…"
बहरहाल इतनी तफ़सील से लिखी पोस्ट के लिये बहुत शुक्रिया…
Beautiful verses, beautiful lines and a great post!
I remember when I was a kid Mirza Galib ka ek program ata tha National pe. My sister loved it and she was the one who introduced me to Galib's verses and songs.
Phir chidi raat baat phoolon ki, raat hai ya barrat phooloon ki !
मेरा अनुभव भी काफी अच्छा रहा ग़ालिब साहब की हवेली घूमने का. दरअसल मुझे पता भी नहीं था की हम वह जा रहे हैं जब अभिषेक ने मुझे कॉल किया था और मैं ऐसे ही घूमने के मूड से निकला था पर शाम यूँ बीतेगी मुझे अंदाजा भी न था.
बहुत बहुत शुक्रिया अभिषेक भाईजान.
सुमन जी की टिप्पणी जो ई-मेल से मिली :
अभिषेक जी
बेहद उम्दा पोस्ट!!
बहुत बहुत आभार की आपने हम सब के साथ इसे साझा किया..बहुत अच्छा लगा ग़ालिब हवेली के बारे में जानना और तस्वीरें, शेर सभी बेहद खूबसूरत हैं….अगली बार दिल्ली आना हुआ तो कोशिश करूँगा कासिम जान गली जाने की.
अभी पिछले दिनों गुलज़ार साहब ने ग़ालिब की जुबानी उनके दिल का हाल सुनाया और आज तुमने सैर ही करवा दी.. दिल को छूने वाली पोस्ट!!
वाह ! अभि , ग़ालिब की हवेली को जानना बहुत अच्छा लगा .. बहुत अच्छा…
बहुत सुन्दर संग्रहणीय पोस्ट के लिए आभार!!
दिल्ली-६ की रुहानियत, खूबसूरत पोस्ट
बहुत शुभकामनाएं
Superb posts!
इस पोस्ट को पढ़कर आपके ब्लॉग का फैन हो गया।..आभार।
अगली बार ले चलना हमको भी वहाँ…। अब किधर से किधर जाना है, ये तो तुम…बोले तो मेरा गाइड तय करेगा न…😊