हमारे एयरकंडीशनर हमसे हमारे मौसम छीन रहे हैं, और हमें इसकी खबर ही नहीं

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मैं अपने स्कूल के दिनों की बातें करूँ, तो मुझे गर्मियों के दिन प्यारे लगते थे. कई वजह थे इसके. हम उन दिनों सरकारी क्वार्टर में रहते थे. गर्मियों की पूरी दोपहर हम खेल में बिता देते थे. पापा माँ ऑफिस गए नहीं कि हमारा खेल शुरू हो जाता. दोपहर दो बजे तक हम लोग बरामदे में खेलते थे और जब धुप बढ़ने लगती और बरामदा गर्म हो जाता तो हम घर में आकर बोर्ड गेम्स खेलते थे. दोपहर बाद हर दिन आइस-क्रीम वाला आता था. वो अपने आइस-क्रीम ट्राली का ठ्क्क्न उठा कर उसे इतने जोर से पटकता था कि अगर आप गहरी नींद में सो भी रहे हों तो आपको पता चल जाता था कि आइस-क्रीम वाला आया है. उन दिनों अगर पापा ऑफिस जाने समय हमें कुछ पैसे खर्चे के लिए दिए हों या पॉकेट मनी बचा रही हो तो हम आइसक्रीम खा लेते थे. आइसक्रीम खाना वैसे उस समय बड़ी बात नहीं थी. पचास पैसे तक के आइसक्रीम मिलते थे. हम लोग पचास-पच्चीस पैसे या एक रुपये के सिक्के अपने पास जमा रखते थे ताकि उससे दोपहर या शाम में आइसक्रीम खा सकें. शाम का वक़्त हुआ नहीं कि हम लोग बाहर निकल गए खेलने के लिए. क्रिकेट या बैडमिंटन, यही दो खेल हम अक्सर खेलते थे. शाम में मेरा एक और शौक था. पौधे और पेड़ों को दाना-पानी देना. मिट्टी से उठती उस सोंधी खुशबु से मुझे प्यार था. शाम में लाइट जाना भी तय रहता था. हमारे साथ एक एडवांटेज जुड़ा था, कि उस समय हम लोग एक तरह से वीआईपी इलाके में रहते थे तो पूरी पटना में भी लाइट चली जाए तो भी हमारे घर में लाइट नहीं जाती थी. उस मकान की ये सबसे बड़ी खासियत थी.कुल मिलाकर गर्मियों के दिन का लगभग यही दिनचर्या रहता था हमारा. मेरे उस घर के मेरे कमरे में अंग्रेजों के ज़माने का पुराना पंखा लगा हुआ था जो कमाल की ठंडी हवा देता था. गर्मियों के दिंनों में मेरा कमरा स्वर्ग से कम नहीं लगता था. ए.सी क्या, उन दिनों कूलर तक की कमी नहीं महसूस होती थी. सिर्फ मेरा ही कमरा नहीं, मेरा पूरा मकान सुकून से भरा था. उसकी एक वजह थी कि मेरे मकान में चारो तरफ पेड़ लगे थे. क्वार्टर के आगे अहाते में एक विशाल अमलताश का पेड़ था, तो मेरे कमरे की खिड़की के सामने गुलमोहर का एक बहुत बड़ा पेड़ और मकान के पिछले हिस्से में भी दो तीन बड़े बड़े पेड़ लगे थे. कुल मिलकर पेड़ों की मेहरबानी हमारे मकान पर ऐसी बनी रहती थी कि गर्मियों में मकान स्वर्ग से कम नहीं लगता था.

रातों के वक़्त अगर बिजली चली जाए तो मुझे वो पल बड़े अच्छे लगते थे. आज हम बिलजी और सुख सुविधा के इतने आदि हो गए हैं कि बिजली गुल हो जाने पर जम कर अपनी भड़ास मौसम, बिजली डिपार्टमेंट और शहर पर निकाल देते हैं. उस समय शायद सुविधाओं के आदि नहीं हुए थे हम इसलिए शिकायतें भी कम थीं. बिजली गुल होने के बाद पूरा परिवार एक जगह बैठता था. चाहे वो बरामदा हो या घर की छत. और मुझे ये बहुत अच्छा लगता था. रात में बिजली आये न आये, इसकी भी ज्यादा परवाह लोगों को नहीं थी. अगर बिजली न आये तो लोग छतों पर चारपाई लगा कर आराम से सो जाया करते थे.

सच कहूँ तो लोग उस समय गर्मियों को एन्जॉय करना जानते थे. अब लेकिन वक़्त बदल चुका है, और कुछ ज्यादा ही बदल चुका है वक़्त. बदलाव तो प्रकृति का नियम है लेकिन इस तरह के बदलाव तो अब प्रकृति पर ही भारी पर रहा है.

अब ज़माना ए.सी का ज़माना है. घरों में, दफ्तर में, गाड़ियों में, दुकानों में एसी लगे हुए हैं. पहले लोग शाम को खुली हवा में बैठते थे, रातों को छतों पर सोते थे, लेकिन अब रातों को छतों पर सोना तो दूर, मकान की बालकनी खोल लोग शाम में भी बाहर बैठना पसंद नहीं करते. अब बालकनी और छत सिर्फ कपड़े सुखाने के काम आती हैं या तो पुराने सामान रखने के काम या फिर एयरकंडीशनर के एग्जॉस्ट को रखने के काम. दिल्ली में आप किसी भी छत पर चले जाईये, आपको सिर्फ एयरकंडीशनर के एग्जॉस्ट ही लगे दिखेंगे और छतें इस वजह से इतनी गर्म रहती हैं कि आप चैन से वहां खड़े भी नहीं हो पायेंगे.

हर घर में कम से कम एक या दो एसी तो लगे ही हुए हैं. लोगों ने छोटे छोटे मकानों में यहाँ तक कि झोपड़ियों में आप एसी अब देख सकते हैं. कई मकान तो ऐसे हैं जहाँ तीन से चार एसी लगे हुए हैं. मतलब हर कमरे के लिए एक एयरकंडीशनर. कितने घरों की बालकनी को तो एयरकंडीशनर की मेहरबानी ऐसी मिलती है कि शाम के बाद वो गर्म हवा का चैम्बर बन जाता है.

ये एयरकंडीशनर की बिक्री में जो क्रन्तिकारी बदलाव आया है, वो शुक्र है कि अभी आया है. बीते दिनों में लोग इसके आदि नहीं थे, वरना हमें

“या गरमियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए”

….जैसे गाने सुनने को मिलते नहीं.

आज लोगों ने ये तय कर रखा है कि वो मौसम के विपरीत काम करेंगे. बाहर कितनी भी गर्मी पड़ रही हो, लेकिन लोगों को तब तक चैन नहीं है जब तक कमरा उनका शिमला न हो जाए. वो गर्मियों के दिनों में कम्बल ओढ़ कर सोना पसंद करते हैं, ताकि ठण्ड के मौसम वाला फील उन्हें मिले. लोगों ने तो एयरकंडीशनर के नाम की भी ऐसी तैसी कर रखी है. एयरकंडीशनर की परिभाषा ये है, कि ये एक ऐसा मशीन है जो हमें एक कम्फ़र्टेबल माहौल देता है. लेकिन लोगों को कम्फ़र्टेबल माहौल नहीं, गर्मियों में सर्दियों की ऐश चाहिए. अधिकांश घरों में लोग एसी को सोलह या अट्ठारह डिग्री पर चलाते हैं और कम्बल ओढ़ लेते हैं. लोगों को अब गर्मी से पाला ही नहीं  पड़ता. दिन भर एयरकंडीशन ऑफिस में बैठ कर काम करना, एसी गाड़ियों से वापस घर आना, और फिर घर में भी एसी में रहना. पहले इस तरह की लक्जरी सिर्फ हाई इनकम क्लास लोगों के पास थी, लेकिन अब इस तरह के लक्जरी बेहद आम हो गए हैं.

आप अगर उन पढ़े लिखे लोगों को ये समझाने जाइएगा कि एयरकंडीशनर किस तरह हमारे प्रकृति के साथ मजाक कर रहे हैं, तो वो आपके ऊपर बड़े भरी भरकम शब्द फेंक देंगे, जैसे क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग. भले वो कुछ पढ़े न हो इसके बारे में, ग्लोबल वार्मिंग का उन्हें सिर्फ एक ही अर्थ समझ में आता है कि गर्मी के मौसम में पारा ज्यादा बढ़ता जा रहा है और गर्मी का मौसम एक्सटेंड हो रहा है. इसके अलावा उन्हें ग्लोबल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या की कोई जानकारी नहीं है, और ना ही लोग इस बात में इंटरेस्टेड हैं कि अपने कम्फ़र्टेबल ज़िन्दगी में से कुछ घंटे निकाल  कर इस समस्या के बारे में थोड़ी जानकारी लें. ऐसे लोगों का बस एक तर्क होता है ए.सी चलाने के लिए, कि भैया गर्मी इतनी बढ़ रही है बिना इसके गुज़ारा कैसे होगा?

मानता हूँ, कि ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी समस्या है, और गर्मी लगातार बढ़ रही है लेकिन इसे पैदा करने वाले कौन हैं? भगवान? प्रकृति या हम और आप जैसे लोग? पेड़ अब लाइटस्पीड की तेज़ी से कटते जा रहे. नए पेड़ आप लगा नहीं रहे हैं, और जहाँ पुराने पेड़ कट कर नए पेड़ लगाए भी जा रहे हैं तो उसका फायदा क्या? नए पेड़ को पुराने पेड़ की उंचाई तक पहुचने में और वैसी छाया देने में वर्षों लग जायेंगे. तब तक तो आपकी प्रकृति आपके हाथ से निकल जायेगी. इसके ऊपर से आप पूरे शहर को गर्म हवा का चैम्बर बना दे रहे हैं. दिल्ली में शाम में भी ठंडी हवा नहीं चलती, इसका एक बड़ा कारण है यहाँ कि फक्ट्री और घरों, दफ्तरों और बिल्डींग में लगे ए.सी जिनकी मेहरबानी हवा पर हो रही है.

अमेरिका में हुए एक सर्वे के मुताबिक अगर क्लाइमेट चेंज की रफ़्तार यही रही तो आगे चल कर एसी के बिना रहना मुमकिन नहीं हो पायेगा. मतलाब समय ऐसा भी आ सकता है कि इन्सान पानी के बगैर कुछ वक़्त गुज़ार ले लेकिन एयरकंडीशनर के बगैर नहीं रह पायेगा. कुछ कुछ ठीक वैसे ही जैसे कभी फिल्मों में देखते थे, कि किसी एंटीवायरस की मार्केटिंग के लिए लोगों ने वायरस फैलाना शुरू कर दिया. और जब हर लोग उस वायरस की चपेट में आ गए, तो वो एंटीवायरस उनके ज़िन्दगी के लिए आवश्यक हो गया.

उसी सर्वे में ये भी साफ़ हुआ है कि अमेरिका में हर साल तेरह हज़ार मौत सिर्फ क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रही है, और उससे भी खतरनाक बात ये है कि हर साल लगभग तीन हज़ार लोग एयर पलूशन और पंद्रह सौ लोग एयरकंडीशनर की वजह से मौत की चपेट में आ रहे हैं. इससे जुड़ा एक बेहद जरूरी लेख को पढ़ने पर इस बारे में ज्यादा जानकारी मिलेगी आपको.

नासा ने क्लाइमेट चेंज की जो रिपोर्ट इस साल जारी की है, उसमें ये साफ साफ़ मेंशन किया है कि गर्मी से निपटने  के जो इंतजाम इंसान ने किये हैं वही अब इस पृथ्वी को गर्म कर रहा है. मौसम वज्ञानिक और एक्सपर्ट मानते हैं कि  एयरकंडीशनर एक जरूरी चीज़ है लोगों के लिए और गर्मी से निपटने में बड़ा सहायक है, लेकिन वो इस बात के साथ साथ ये भी कहते हैं कि हमें ये सीखना होगा कि हम एयरकंडीशनर का प्रयोग कैसे करें. अगर बिना सोचे समझे हम पूरे दिन एयरकंडीशनर चलाते रहे तो आगे आने वाले दिन और ख़राब होंगे और यही सुविधा जो लोगों के आराम के लिए है, वो लोगों की जान का दुश्मन बन जाएगा. ऐसा माना जा रहा है कि अगले आने वाले दस सालों में पृथ्वी अभी के मुकाबले पचास प्रतिशत और गर्म हो जाएगी. एक्सपर्ट अपने हर रिपोर्ट में ये बात दोहराते हैं, कि इस समस्या का समाधान सिर्फ और सिर्फ लोगों के पास ही हैं.

आज एयरकंडीशनर हर घर की जरूरत बन गया है. जब मैं दिल्ली आया था, तो गर्मी से काफी परेशान रहता था. मैं बैंगलोर में बहुत साल रह चुका था और गर्मियों की आदत छुट गयी थी, लेकिन फिर भी मैंने ए.सी खरीदने के बारे में कभी सोचा नहीं. मुझे ये सोचना ही अजीब लगता था कि घर में ठण्ड रहेगी और बाहर सड़कों पर बेतहाशा गर्मी. मुझे रातों में खिड़की खोल कर सोना या फिर छत पर सोने में ज्यादा आनंद आता था. लेकिन जब से पूरा परिवार यहाँ रहने लगा है, तो मुझे भी ए.सी लगवानी पड़ी.व्यग्तिगत तौर पर मुझे एयरकंडीशनर लगाने में कोई बुराई नहीं समझ आती है, बेहद गर्मी हो जाए तो आप कुछ समय के लिए एसी की ठंडी हवा में आराम पा सकते हैं, लेकिन इस सुविधा को आप चौबीस घंटे की जरूरत तो मत बनाइये.दिन रात चल रहे ए.सी से आप प्रदुषण तो फैला ही रहे हैं, साथ ही साथ बिजली का ओवरलोड भी कर रहे हैं. आज पूरी दुनिया में बिजली बचत करने का और प्रकृति को सहेजने के कैंपेन चल रहे हैं. थोड़ा हमें भी तो समझदार बन कर अपने प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए न.

अक्सर गर्मियों में गुलज़ार साहब की एक नज़्म मेरे मन में दौड़ लगाती रहती है. जब भी इस नज़्म को पढ़ता हूँ या गुनगुनाता हूँ तो सोचता हूँ गुलज़ार साहब ने बहुत साल पहले ये नज़्म लिखी थी, और तब कितना करारा व्यंग था बदलते समय पर. अब अगर वो फिर से इस नज़्म का पार्ट दो लिखेंगे तो और कितनी तल्खियत होगी नज़्म में. पढ़िए इस नज़्म को और कुछ देर बस सोचिये, हम कहाँ से कहाँ आ गए और कहाँ जा रहे हैं –

गुलज़ार साहब की दिल्ली की दोपहर 

सन्नाटों में लिपटी वो दोपहर कहाँ अब
धुप में आधी रात का सन्नाटा रहता था

लू से झुलसी दिल्ली की दोपहर में अक्सर
‘चार पाई’ बुनने वाला जब,
घंटा घर वाले नुक्कड़ से,कान पे रख के हाथ,इक हांक लगाता था
“चार..पाई…बनवा लो…”
खस-खस की टटीयों में सोए लोग अंदाजा कर लेते थे…डेढ़ बजा है!

दो बजते बजते जामुनवाला गुजरेगा
“जामुन…ठन्डे..काले…जामुन”
टोकरी में बड के पत्तों पर पानी छिड़क के रखता था
बंद कमरों में….
बच्चे कानी आँख से लेटे लेटे माँ को देखते थे,
वो करवट लेकर सो जाती थी.

तीन बजे तक लू का सन्नाटा रहता था
चार बजे तक “लंगरी सोटा” पीसने लगता था ठंडाई
चार बजे के आसपास ही हापड के पापड़ आते थे
“लो..हापड़..के…पापड़…”
लू की कन्नी टूटने पर छिड़काव होता था
आँगन और दुकानों पर!

बर्फ की सील पर सजने लगती थी गंडेरियाँ
केवड़ा छिड़का जाता था
और छतों पर बिस्तर लग जाते थे जब
ठन्डे ठन्डे आसमान पर
तारे छिटकने लगते थे!

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. एकदम नास्टैल्जिया की बारिश कर दी तुमने…और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी…। ये तो वैसे भी इंसानी फितरत है, समय रहते चेतता नहीं और समय निकल जाने पर या तो हाथ मलता है या अपनी करनी का ठीकरा दूसरे के मत्थे फोड़ता है…।

  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बार-बार बहाए जाने के बीच ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…

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